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भगवान के आस्तित्व का प्रबल प्रमाण है भारत का यह मंदिर | जानिये इसके बारे में...

Nov 15 2018

Posted By:  Sandeep

शास्त्रों में कहा गया है की भारत में प्राचीन काल में देवता निवास करते थे | पुरे विश्व में भारत की तुलना में शायद ही ऐसा कोई देश हो जो भगवान के आस्तित्व की प्रबल व्याख्या करता है |  


भारत के उत्तरी राज्य उत्तराखंड में एक कनखल हरिद्वार नामक स्थान है | इसी स्थान पर एक मंदिर बना हुआ है जिसे कनखल दक्षेश्वर महादेव का मंदिर कहते है | इस मंदिर के बारे में कहा जाता है की यह पुरे भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है 

यह मंदिर शिव भक्तों के लिए भक्ति और आस्था की एक पवित्र जगह है। इस मंदिर से एक दंतकथा जुडी हुई है | जिसकी वजह से इसे देखने के लिए देश-विदेशों से काफी संख्या में श्रद्धालु आते है | पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस क्षेत्र पर राजा दक्ष राज्य किया करते थे | राजा दक्ष स्वयं ब्रह्म देव जी के पुत्र थे | राजा दक्ष के एक पुत्री थी जिसका नाम सती था | सती भगवान शंकर की पहली पत्नी थी | एक बार राजा दक्ष ने इस स्थान पर एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया | जिसमे सभी ऋषि-मुनियों, देवी-देवताओ को आमंत्रित किया |


इसके अतिरिक्त यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, नाग असुर आदि जातियों को भी आमंत्रित किया | लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया | इसलिए माँ सती बिना बुलाये ही यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए चली गयी | हालांकि इस यज्ञ में शिवजी नहीं गए थे | जब दक्ष को यह पता चला की उनकी पुत्री बिना निमंत्रण ही यज्ञ में सम्मिलित हुई है तो दक्ष ने भगवान शिव और माँ सती का काफी अपमान किया | इतने सारे लोगो के बीच हुए अपमान को माँ सती सहन नहीं कर सकी और जिस यज्ञ का आयोजन हो रहा था | उसी यज्ञ के कुंड में अग्नि समाधी ले ली | जब इस बात का पता भगवान शिव को चला तो उन्होंने वीरभद्र का रूप धारणा किया | भगवान शिव ने घोर युद्ध करते हुए राजा दक्ष का अंत किया | 

इसके पश्चात् सभी देवी-देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने राजा दक्ष को जीवन दान दिया और उस पर बकरे का सिर लगा दिया। जब राजा दक्ष को अपनी गलतियों को एहसास हुआ तब उन्होंने भगवान शंकर से क्षमा मांगी। उस समय भगवान शिव ने कहा की आज से इस स्थान को दक्षेश्वर महादेव के नाम से जाना जायेगा | इसके बाद इस स्थान पर माँ सती और भगवान शिव के सम्मान पर दक्षेश्वर महादेव का मंदिर बनाया गया | इस मंदिर का निर्माण कार्य रानी दनकौर द्वारा 1810 ईस्वी में करवाया गया था | लेकिन प्राकृतिक आपदा के कारण कुछ ही वर्षों में यह मंदिर टूट गया | आजादी के बाद 1962 में इसका जीर्णोद्धार करवाया गया |


भगवान शिव की वीरता और माता सती के बलिदान की याद दिलाता यह मंदिर आज भी उत्तराखंड में स्थित है | इस मंदिर के पास ही गंगा के किनारे "दक्षा घाट" स्थित है जहां शिवभक्त गंगा में स्नान कर भगवान शिव के दर्शन करते हैं।
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