भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम और भगवान कृष्ण को दुष्टो का नाश और धर्म की स्थापना करने वाला बताया जाता है | हम सभी जानते है की भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु एक शिकारी के बाण से हुई थी | इसी प्रकार भगवान राम ने श्री सागर में समाधी ले ली थी | लेकिन क्या आप जानते है भगवान राम की पूजा करने वाले लक्ष्मण को उनके भाई राम ने ही मृत्यु दंड का आदेश दिया था | आज इस घटना को विस्तार से जानते है |
भगवान राम के द्वारा लक्ष्मण को मृत्युदंड देने बारे में अनेक विद्वानों ने अपने-अपने मत दिए है | लेकिन महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण में हमे वास्तविकता का पता चलता है | आज हम आपको बताने वाले है की इस महापुरुष ने अपनी रामायण में क्या लिखा है ?
महर्षि वाल्मीकि जी लिखते है की एक बार देव लोक से काल साधु का वेश धारण करके भगवान राम के पास आये | उस समय जो भी व्यक्ति भगवान राम से मिलने जाता था उसे पहले लक्ष्मण से मिलना होता था | काल ने लक्ष्मण से कहा की आप हमे राम से मिलवाये | लक्ष्मण ने ऐसा ही किया और साधु रुपी काल को भगवान राम के पास लेकर चले गये |
अपने कक्ष में भगवान राम विराजमान थे | जहां काल ने कहा की मैं आपसे अकेले में मिलना चाहता हूँ | इसलिए आपको यह घोषणा करनी होगी की यदि कोई व्यक्ति अंदर आता है या चुपके से हमारी बात सुनता है तो आप उसे मृत्यु दंड देंगे | भगवान राम ने लक्ष्मण से कहा की हे लक्ष्मण तुम इस आदेश का पालन करो |
भगवान राम के साथ कक्ष में कोई भी नहीं था और ना ही कोई व्यक्ति साधु और राम की बाते सुन सकता था | जहाँ काल ने अपना रूप दिखया और कहा भगवान ब्रह्म देव ने आपको देव लोक लौट आने के लिया कहा है | भगवान राम ने काल को आश्वाशन दिया की वह जल्द ही देवलोक आयेंगे |
उसी समय अचानक से लक्ष्मण राम के पास उपस्थित हो गये | भगवान राम यह समझ नहीं पा रहे थे की लक्ष्मण उनके आदेश की अवज्ञा कैसे कर सकता था | लक्ष्मण के देखकर काल अंतर्ध्यान हो जाते है | राम ने लक्ष्मण से पुछा की क्या बात है उन्होंने कहा की द्वार पर महर्षि दुर्वासा आये हुए है | वे आपसे मिलना चाहते है यदि किसे ने आपसे उन्हें नहीं मिलवाया तो वे सम्पर्ण अयोध्या का सर्वनाश कर देंगे |
दुर्वासा महर्षि से मिलने के बाद भगवान राम ने एक सभा बुलवाई और कहा की मैंने यह व्रत किया था की यदि कक्ष में कोई आ गया तो मैं उसे मृत्यु दंड दूंगा | लेकिन यह मेरा प्राणो से भी प्रिय भाई है, मैं इसी मृत्यु दंड कैसे दे सकता हूँ ? मुझे क्या करना चाहिए ? आप सभी मंत्री, गुरुदेव, बंधू मेरा मार्गदर्शन कीजिए | कुछ समय बाद यह तय हुआ की राम को लक्ष्मण का त्याग कर देना चाहिए | क्योंकि शास्त्रों में राजा के त्याग कर देने को भी मृत्यु दंड ही माना गया है |
ऐसा कहा जाता है की अपने सीने पर पत्थर रखकर भगवान राम ने लक्ष्मण का त्याग किया | लेकिन लक्ष्मण भगवान राम से एक पल की दूरी बर्दाश्त नहीं कर सकता था | इसलिए उसने समुद्र में जाकर समाधी ले ली और फिर समुद्र में जाकर अपना शेषनाग का रूप धारण कर लिया |