पौराणिक कथाओ के अनुसार माता पार्वती ने आतताई शक्तियों का अंत करने के लिए माँ दुर्गा का विकराल रूप धारण किया था | भारत में माँ दुर्गा के अनेको मंदिर है | जहाँ माँ के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है | लेकिन आज हम आपको माँ दुर्गा उस मूर्ति के बारे में बताने जा रहे है जिसे पाने के लिए कई भयानक युद्ध हुए है | ऐसा कहा जाता है की प्राचीन युग में महिषासुर नाम का राक्षस हुआ करता है | जिसका वध माँ दुर्गा ने किया था | महिषासुर का वध करने के बाद माता दुर्गा को महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना गया | यह चमत्कारिक दुर्गा माँ के इसी रूप की है | इस मूर्ति को महिषासुर मर्दिनी माता के रूप में पूजा जाता है | चूँकि यह मूर्ति एक शिला के रूप में प्राप्त हुई थी | इसलिए इस देवी को शिला देवी भी कहा जाता है |
इस चमत्कारिक मूर्ति को पाने के लिए कई भयानक युद्ध हुए है | महिषासुर मर्दिनी माता की मूर्ति आज राजस्थान के आमेर दुर्ग में स्थित है | यह दुर्ग राजस्थान की राजधानी जयपुर में है | इसे आमेर में एक मंदिर बनाकर स्थापित किया गया था | मंदिर का निर्माण अकबरकालीन राजा मानसिंह के द्वारा करवाया गया था | महिषासुर मर्दिनी की इस चमत्कारिक मूर्ति के पीछे एक अलग ही इतिहास है | आइये इस मूर्ति के इतिहास पर विस्तार से चर्चा करे |
ऐसा कहा जाता है की राजा मानसिंह अजमेर में अपनी बीमारी का इलाज करवा रहे थे | तभी उन्हें सुचना मिली की बंगाल के राजा केदार के पास एक चमत्कारिक मूर्ति है | जिसके साथ यदि कोई भी राजा यज्ञ करता है तो कोई भी उसे युद्ध में हरा नहीं पायेगा | यह विशेष यज्ञ बंगाल का राजा शीघ्र ही करने वाला है |
दोस्तों, हम आपको बता दें की आमेर का राजा मानसिंह काफी शातिर व्यक्ति था | वह अकबर का प्रधानसेनापति और नवरत्नों में से एक था | उसे युद्ध करना काफी पसंद था | एक इतिहासकार के अनुसार राजा मानसिंह ने अपने जीवनकाल में 80 से भी अधिक युद्ध किये थे और लगभग सभी जीते थे | इसलिए वह चाहता था की किसी तरह वह चमत्कारी मूर्ति उसे प्राप्त हो जाये |
राजा मानसिंह ने आमेर की राजपूत सेना और दिल्ली की विशाल मुगलसेना के साथ बंगाल पर चढ़ाई कर दी | उसने बंगाल के राजा केदार को परास्त किया और यह मूर्ति आमेर दुर्ग में लाकर स्थापित करवा दी | कहा जाता है की जिस दिन मूर्ति स्थापित की गयी उसी दिन माता महिषासुर मर्दिनी ने मानसिंह को सपने में दर्शन दिए | माता ने उससे कहा की उसे नवरात्रो में एक मनुष्य की बलि देनी होगी | राजा मानसिंह ने माता की इच्छा पूरी की |
जब मानसिंह की मौत हुई तो बाद के आमेर शासको ने माता को मनुष्य की बलि नहीं दी | मनुष्य के स्थान पर वे पशु की बलि देने लगे | इससे माता रुष्ट हो गयी और उन्होंने अपनी गर्दन घुमा ली | जिसे आप स्वयं मंदिर में जाकर देख सकते है | दूर से देखने पर यह स्पष्ट नजर नहीं आती है | भारत सरकार ने आजादी के बाद पशु बलि पर भी रोक लगा दी | पहले के समय में इस मूर्ति के दर्शन केवल कुछ राजपरिवार के सदस्य और सामंत ही कर सकते थे | लेकिन अब इसके दर्शन हर आम-आदमी कर सकता है | इसे आमेर के कछवाह राजवंश की आराध्य देवी कहा जाता है |
ऐसा कहा जाता है की जब मानसिंह ने आमेर में यह मूर्ति स्थापित की तो इसके बाद आमेर रियासत ने काफी तरक्की कर ली | उस समय केवल दिल्ली ही ऐसी सल्तनत थी जो आमेर साम्राज्य को हरा सकती थी | कुछ किवंदतियों में यह भी कहा गया है की इस मूर्ति को पाने के लिए काफी राजाओ ने प्रयास किया था | लेकिन यह मानसिंह को ही प्राप्त हुई थी |