महर्षि नारद ब्रह्मा जी के मानस पुत्र कहे जाते है | वे सच्चिदानंद भगवान श्री विष्णु के बहुत बड़े भक्त है | उनका प्रभाव इतना अधिक है की देव और दानव भी उनकी बातो का समर्थन करते है | इसलिए उन्हें देवलोक में देवर्षि नारद की उपाधि भी दी गयी है | देवर्षि नारद सदैव नारायण नाम का जप करते रहते है | लेकिन एक समय उन्होंने क्रोधित होकर अपने आराध्य भगवान विष्णु को श्राप दे दिया था | आईये इस वृतांत को विस्तार से जानते है |
एक बार परम तेजस्वी और महात्माओ में श्रेष्ठ देवर्षि नारद को यह अभिमान हो गया था की वासना के देवता कामदेव भी उनकी तपस्या को भंग नहीं कर सके | जिसने स्वयं देव और दानव के अतिरिक्त बड़े-बड़े महर्षियों की तपस्या भंग की है वे उनकी तपस्या भंग करने में असमर्थ रहे | इसलिए उन्होंने कामदेव को परास्त कर दिया है |
यह बात बताने के लिए विचरण करते हुए नारद जी कैलाश पर्वत पर पहुँच गए | वहां महादेव अपने परिवार के साथ बैठे थे | उन्होंने कहा की हे प्रभु ! मेरी तपस्या को कामदेव भी विफल नहीं कर सके | मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ | दरअसल सच्चाई तो ये थी की नारद जी की तपस्या इसलिए भंग नहीं हुई थी क्योंकि महादेव ने कामदेव को नारद जी से दूर रखा था | इसलिए भगवान शिव समझ गए की नारद को अपने तपोबल पर अभिमान हो गया है |
भगवान शिव ने कहा की आप ये बात किसी ओर को ना बताये | लेकिन नारद जी ने ऐसा नहीं किया | उन्होंने ये बात विष्णु को जाकर बता दी | इसलिए भगवान विष्णु क्रोधित हो गये और उन्होंने नारद का घमंड तोड़ने का फैसला किया | उन्होंने एक माया रची | जब नारद जी भगवान विष्णु को ये समाचार सुनकर प्रस्थान कर रहे थे तो उन्होंने धरतीलोक पर अत्यंत सुन्दर नगरी देखी | जो चारो ओर से समृद्ध और सुरक्षित थी | इस नगरी में यहाँ की राजकुमारी का स्वयंवर होने जा रहा था |
तभी अचानक नारद जी की नजर उस राजकुमारी पर पड़ी | उसे देखकर नारद जी भी स्वयं को नियंत्रित नहीं कर पाए तो उन्होंने उस खूबसूरत राजकुमारी से विवाह करने का फैसला किया | लेकिन राजकुमारी को अपने लिए एक सुन्दर पुरुष की आवश्यकता थी | नारद जी तुरंत बैकुंठ गए और उन्होंने भगवान विष्णु से आग्रह किया की वे उन्हें सुन्दर बना दे |
भगवान विष्णु ने नारद के पुरे शरीर को सुन्दर बना दिया | इसके बाद स्वयंवर में भाग लेने नारद जी पहुंचे तो नारद जी देखा की उनके रहते राजकुमारी ने किसी और को अपना वर चुन लिया है | जब उन्होंने राजकुमारी से पूछा की मैं इस संसार का सुन्दर पुरुष हूँ आपने मुझे अपना वर क्यों नहीं चुना ? राजकुमारी ने नारद को जल में अपना प्रतिबिम्ब देखने के लिए कहा |
जब नारद जी जल में जाकर देखा की उनका पूरा शरीर बहुत सुन्दर है लेकिन उनका चेहरा बन्दर का है तो उन्हें बहुत बुरा लगा | तभी नारद जी ने देखा की राजकुमारी ने जिस शख्स को वरमाल पहनाई है वह और कोई नहीं बल्कि, साक्षात् भगवान श्री विष्णु है | विष्णु को यह छल करता देख नारद जी अत्यंत क्रोधित हो गए | उन्होंने कुछ भी नही सोचा और अपने आराध्य को श्राप दे दिया | उन्होंने कहा की जिस प्रकार मैं प्रेम वियोग में तड़प रहा हूँ उसे प्रकार आप भी त्रेतायुग में प्रेम वियोग में तड़पेंगे |
इसके बाद भगवान विष्णु ने नारद का वास्तविकता से परिचय करवाया | दरअसल, जिस राजकुमारी के प्रेम में विवश होकर नारद ने विष्णु को श्राप दिया था | वह स्त्री और कोई नहीं बल्कि विष्णु का मोहनी रूप थी | भगवान विष्णु ने कहा की आपको घमंड हो गया था | इस घमंड को तोड़ने के लिए उन्होंने ये माया रची थी | इसके बाद नारद जी भगवान विष्णु के चरणों में गिर गए | विष्णु ने तो नारद को क्षमा कर दिया | लेकिन उनको अपने 7वें अवतार में सीता माँ से वियोग सहना पड़ा और उन्हें स्वयं को भी वन के कष्ट रहने पड़े थे | नारद का श्राप वहां प्रभावी हुआ |