हिन्दू धर्म ग्रंथो में भगवान काल भैरव का वर्णन बहुत ही कम देखने को मिलता है | जबकि भगवान कालभैरव काल के भी काल है | जो व्यक्ति उनकी श्रद्धा भाव से पूजा करता है उन्हें यमराज के भय से भी मुक्ति मिल जाती है | ये बात सभी लोगो जानते है की काल भैरव काल के भी काल है और भगवान शिव का अंशावतार है | आईये जानते है की भगवान शिव ने क्यों अपना काल रूप धारण किया था...
स्कन्द पुराण और शिवपुराण के अनुसार प्राचीन काल में ब्रह्मा और विष्णु में ये विवाद हुआ की इस सृष्टि में परमतत्व कौन है ? भगवान विष्णु और ब्रह्मा ने वेदो से ये बात पूछी | वेदो ने कहा की स्वयं भगवान शिव परम तत्व है | इस बात से क्रोधित होकर ब्रह्म देव के पांचवे सिर ने शिव जी का काफी उपहास किया | पांचवे सर ने कहा की:- आप किस शिव की बात कर रहे है वह रूद्र | वह तो मुझसे प्रकट हुआ है | मैंने ही तो उसका नाम रूद्र रखा है |
उसी समय भगवान शंकर वहां प्रकट हो गए | भगवान शिव को देख ब्रह्मा के पांचवे मुख ने कहा की हे पुत्र ! तुम मेरी शरण में आओ, मेरे निकट बैठो | मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा | ऐसा कहा जाता है की भगवान शिव ने उसी समय काल भैरव नामक छाया को उत्पन्न किया था और उन्होंने उसे सभी पापियों का विनाश करने वाला और कालभैरव की पदवी देकर सम्मानित किया | उन्होंने काल से कहा की तुम इस मूढ़ की हत्या कर दो |
भगवान शिव के अंशावतार भगवान कालभैरव ने ब्रह्मदेव के पांचवे मस्तक को अपने त्रिशूल से अलग कर दिया | इसके बाद काल भैरव ब्रह्महत्या के दोषी हो गए थे | फिर भगवान शिव के द्वारा ही ब्रह्महत्या के पाप का निवारण किया गया था | ऐसा कहा जाता है की जो व्यक्ति भगवान कालभैरव की पूजा करता है उसे भय से स्वतः ही मुक्ति मिल जाती है |
जबकि अनेक विद्वान् अपने अनुसार काल भैरव की उत्पत्ति बताते है | अनेक विद्वानों का मानना है कि वेदों में जिस परम पुरुष का चित्रण रुद्र में हुआ, वह तंत्र शास्त्र के ग्रंथों में उस स्वरूप का वर्णन 'भैरव' के नाम से किया गया | जिसके भय से स्वयं सूर्य एवं अग्नि तपते हैं | इंद्र-वायु और मृत्यु के देवता अर्थात यमराज अपने-अपने कामों में तत्पर हैं, वे ही परम शक्तिमान "भैरव" हैं |