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मरे हुए व्यक्ति की तेरहवीं में खाना खाने से पहले जरूर जान लें. कृष्ण द्वारा कहीं गई यह बातें...

Jun 15 2019

Posted By:  AMIT

शास्त्रों के अनुसार हर व्यक्ति के जीवन मरण जिंदगी के दो पहलू-चक्र होते है, जो चीज इस दुनिया में आई है उसे एक ना एक दिन जाना भी होता हैं | अगर वहीं बात करें इंसान की तो, इस संसार में जन्म लेने से लेकर इसको अलविदा कहने तक में इंसान कई परम्पराओं में बंध जाता हैं | क्योंकि जन्म लेने के बाद से ही इन परम्पराओं से इंसान को बांध दिया जाता है जानिए क्यों- 


हमारे जीवन के मुताबिक जब व्यक्ति इस दुनिया को अलविदा कहता है, उसके बाद भी कई परम्पराओं को निभाने के लिए बाद ही यह माना जाता है कि व्यक्ति की आत्मा शरीर से मुक्त हो गई हैं | 
 
मनुष्य के जीवन से जुड़ी कई-विभिन्न परम्पराओं में एक परम्परा तेरहवीं भोज को भी माना जाता है और इस परम्परा का महत्व बहुत से लोग जानते भी होंगे | जो इंसान शरीर से अपनी आत्मा त्याग देता है तो इससे जुड़ी परम्परा के मुताबिक 13 वें दिन पुरे गांव वह रिश्तेदारों को भोजन करवाया जाता है जिसे तेरहवीं के नाम से भी जाना जाता हैं | 



ऐसी मान्यता है कि जब तक यह भोजन नहीं करवाया जाता है तब तक मृत व्यक्ति की आत्मा भटकती रहती है और इस भोजन के बाद ही उनकी आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती हैं | 


लेकिन आज हम इस भोज के सन्दर्भ में कुछ बताने वाले है जिनके बारे में शायद आपको नहीं पता है- 
शास्त्रों के अनुसार बताया जाता है कि, महाभारत के समय भगवान कृष्ण दुर्योधन से युद्ध से पहले संधि करने के लिए उसके पास जाते हैं | लेकिन दुर्योधन इस संधि प्रस्ताव को स्वीकार करने से मना कर देता है और इस वजह से संधि नहीं हो पाती हैं | इसलिए यह निश्चित हो गया कि अब यह युद्ध होगा, इसके बाद जब श्री कृष्ण वहां से वापस लौटने लगते है तब दुर्योधन उनसे भोजन ग्रहण करने की अपील करता हैं | 


परन्तु श्री कृष्ण भोजन ग्रहण की बात को अस्वीकार करते हुए कहते है कि- "सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनै: |" संस्कृत में कहे गए इस वाक्य का अर्थ है कि- "यानि जहाँ प्रेम हो वही पर भोजन करना चाहिए, जहाँ के वातावरण में शोक या आपदा हो वहाँ पर किया गया भोजन भी अशुभ होता है।" अगर इन शब्दों को तेरहवीं से जोड़कर देखे तो, श्री कृष्ण जी द्वारा कही गई ये बातें सही साबित होती हैं | क्योंकि तेरहवीं को भोज भी दुःख के समय आयोजित किया जाता है, जो किसी भी तरिके से सही नहीं माना गया हैं | लेकिन सदियों से चली आ रही परंपराओं के बंधन में बंधे रहने के कारण, आज भी लोग इन परंपराओं का पालन कर रहे हैं | 
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