हमारे देश में देवी-देवताओं की बहुत मान्यता है और उनका अस्तित्व भी सदियों से बना हुआ है | भारत में जितने भी बड़े मंदिर है उनकी कोई ना कोई ख़ासियत ज़रूर है | देश में प्राचीन काल से ही कई सिद्ध मंदिर है जैसे कि वैष्णो देवी, केदारनाथ और बद्रीनाथ जिसमें लोगों की अटूट आस्था है | इन सभी मंदिरों के बारे में लगभग सभी को पता है लेकिन क्या आपने कभी ऐसे किसी मंदिर के बारे में सुना है जो दिन में दो बार समुद्र में डूब जाता है |
अगर नहीं, तो हम आपको एक ऐसे ही अनोखे मंदिर के बारे में बताने जा रहे है जिसके बारे में जानने के बाद आप भी वहां ज़रूर जाना चाहेंगे | यह मंदिर समुद्र की लहरों में अपने आप गायब हो जाता है और कुछ देर बाद फिर से बाहर आ जाता है | गुजरात शहर में स्थित भगवान शिव का यह मंदिर स्तंभेश्वर महादेव के रूप में जाना जाता है | तो क्या हैं इस मंदिर से जुड़े तथ्य, आईये जानते है |
शिव का यह अनोखा मंदिर गुजरात के कैम्बे तट पर है | यह चमत्कारी मंदिर दिन में दो बार (सुबह और शाम) समुद्र में डूब जाता है और फिर प्रकट हो जाता है | यह मंदिर स्तंभेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है | यह मंदिर समुद्र की लहरों में अपने आप ही गायब हो जाता है और कुछ देर बाद फिर से बाहर निकल आता है | ऐसा दिन में सिर्फ दो बार ही होता है, दरअसल यह मंदिर समुद्र के जिस किनारे पर है उसमें दो बार ज्वार-भाटा आता है, इस वजह से समुद्र का पानी मंदिर में आकर शिवलिंग का दो बार अभिषेक कर वापस लौट जाता है | इस दौरान वहां पर किसी को भी जाने की अनुमति नहीं होती है |
शिवपुराण में भी है उल्लेख
गुजरात के स्तंभेश्वर मंदिर का उल्लेख महाशिवपुराण में रूद्र संहिता भाग-2 के अध्याय 11 में किया गया है | इस मंदिर की खोज आज से लगभग 150 साल पहले हुई थी | यह मंदिर बड़ोदरा से 40 मील की दूरी पर अरब सागर के कैम्बे तट पर स्थित है | मंदिर में स्थापित शिवलिंग लगभग 4 फीट ऊंचा और 2 फीट के व्यास का है |
मंदिर के गायब होने की वजह
इस मंदिर में शिवलिंग का दर्शन दिन में केवल एक बार होता है | बाकी समय यह मंदिर समुद्र में डूबा रहता है, समुद्र तट पर दिन में दो बार ज्वार भाटा आता है | जिस वजह से पानी मंदिर के अंदर पहुंच जाता है और मंदिर नजर नहीं आता | ज्वार के उतरते ही मंदिर पुनः दिखाई देने लगता है | ज्वार के समय शिवलिंग पूरी तरह जलमग्न हो जाता है और उस समय वहां किसी को भी जाने की अनुमति नहीं होती | यहां दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को ख़ास तौर से पर्चे बांटे जाते है | इन पर्चों में ज्वार भाटा के आने का समय लिखा होता है ताकि उस वक़्त मंदिर में कोई ना रहे |
क्या है पौराणिक कथा
शास्त्रों की पौराणिक कथा की मानें तो ताड़कासुर ने घोर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर अमर होने का वरदान मांगा था | भगवान शिव ने उसका यह वरदान नकार दिया था जिसके बाद उसने दूसरे वरदान के रूप में केवल शिव पुत्र द्वारा अपनी मृत्यु मांगी थी | वरदान मिलने के बाद ताड़कासुर ने अपने अत्याचारों से हर तरफ हाहाकार मचा दिया था | उससे परेशान होकर देवगण भगवान शिव के पास गए | तब श्वेत पर्वत के पिंड से कार्तिकेय का जन्म हुआ और उन्होंने ही ताड़कासुर का वध किया | परंतु यह पता लगने पर कि वह भगवान शिव का सबसे बड़ा भक्त था कार्तिकेय आत्मग्लानी से भर गए | इस पर भगवान विष्णु ने एक उपाय बताया कि वह यहां पर शिवलिंग स्थापित करें और प्रत्येक दिन उनसे क्षमा मांगे | इस तरह से यह शिवलिंग यहां विराजमान हुआ और तबसे ही इस मंदिर को स्थंभेश्वर के नाम से जाना जाता है |