आचार्य चाणक्य का दिया सफलता सूत्र
"क: काल: कानि मित्राणि को देश: कौ व्ययागमौ। कस्याऽडं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुंहु:।।"
आचार्य चाणक्य ने मनुष्य की सफलता के लिए यह सूत्र दिया था जिसका अर्थ है सफलता के लिए काल यानि समय, कानि मित्र अर्थात कपटी मित्र और देश की जानकारी बहुत आवश्यक है |
अच्छा समय
मनुष्य के जीवन में हर समय अच्छा समय नहीं होता है, इसीलिए हमेशा अनुकूल समय में ही अपनी सफलता को पाने के लिए कर्म करना चाहिए, सफलता में अनुकूल समय का बहुत बड़ा महत्व होता है, और अनुकूल समय में कभी भी लापरवाही नहीं करनी चाहिए क्योंकि अनुकूल समय में की गयी लापरवाही असफलता का कारण बनती है |
स्वार्थी मित्र
मनुष्य के जीवन में दोस्तों का होना बहुत जरुरी है क्योंकि बिना दोस्तों के जिंदगी अधूरी होती है, दोस्त हर प्रकार के सुख दुःख के साथी होते है | लेकिन मनुष्य को अपने जीवन में अपने अच्छे और बुरे दोस्तों की पहचान भी होनी चाहिए क्योंकि सच्चे मित्र आपके साथ हर परिस्थिति में में खड़े रहते है, और वही कपटी और स्वार्थी मित्र जरूरत पड़ने पर कभी काम नहीं आते है वे अपना मतलब निकालने में रहते है और हमारी सफलता में भी परेशानी उत्पन्न करते है, इसीलिए स्वार्थी मित्रो से दूर रहना चाहिए |
देश की जानकारी
चाणक्य के अनुसार मनुष्य की सफलता के पीछे उसके स्थान और देश का महत्वपूर्ण भाग होता है, मनुष्य को कोई भी कार्य अपने देश और स्थान के अनुसार ही करना चाहिए क्योंकि स्थान और काल के अनुरूप कार्य ना करने के पर विपरीत परस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती है जो सफलता में बाधा उत्पन्न कर देती है और मनुष्य उनमे उलझ कर रह जाता है, और वह सफलता प्राप्त नहीं कर पाता है क्योंकि वह अन्य कार्यो पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता है |
आर्थिक संतुलन
मनुष्य को अपने जीवन में आय और व्यय में तालमेल बना कर चलना चाहिए, आर्थिक संतुलन बना कर चलना चाहिए क्योंकि बिना आर्थिक संतुलन के व्यक्ति आर्थिक समस्याओ और कर्ज से घिर जाता है और उसे अपना जीवन आर्थिक तंगी में ही गुजारना पड़ता है और वह कभी सफलता प्राप्त नहीं कर पाता है |
अधीनता और प्रबंधन
व्यक्ति को अपने संस्थान के नियम कायदो के अधीन ही कार्य करना चाहिए और इसके साथ अपनी सफलता के लिए भी कार्य करते रहना चाहिए, इसके लिए जीवन में और कार्य में प्रबंधन बनाकर चलना चाहिए इससे व्यक्ति सफलता की और बढ़ता है, इसके अलावा जो व्यक्ति सिर्फ इधर उधर की बातो में व्यस्त रहते है और कार्य में ध्यान नहीं देते है वे हमेशा पीछे ही रहते है |
सामर्थ्य का ज्ञान
मनुष्य को अपने सामर्थ्य, अपनी क्षमता का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है, इसीलिए व्यक्ति को अपनी क्षमता के अनुसार ही किसी कार्य को शुरू करना चाहिए क्योंकि क्षमता से अधिक किसी कार्य को करने की इच्छा हमेशा मुश्किल में डालती है, इसका अर्थ यह नहीं है की बड़ा सोचना गलत है, इससे आशय यह है की आप आपने सामर्थ्य को धीरे धीरे बढ़ाये और उसके अनुरूप ही कार्य कर के सफलता की सीढ़ी चढ़ा जा सकता है |