पुराणों के अनुसार सृष्टि के आरम्भ के समय सबसे पहले त्रिदेव प्रकट हुए, भगवान विष्णु ने अपनी नाभि से ब्रह्मा जी को प्रकट किया और उन्हें सृष्टि के निर्माण का कार्य सौपा, बताया जाता है की गंगा की उत्पति विष्णु जी के अंगूठे से हुयी थी | ब्रह्मा जी ने सृष्टि के निर्माण के लिए अपने तप के बल से 8 पुत्रो को जन्म दिया, उनमे से 7 पुत्र सप्तऋषि और आंठवे पुत्र नारद मुनि कहलाये |
शिव जी का अर्धनारीश्वर रूप
ब्रह्मा जी द्वारा इस सृष्टि की धीमी रचना को देखते हुए भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर रूप लिया और तब ब्रह्मा जी ने कहा की वह पुरुष और स्त्री के समागम से मैथुनी सृष्टि के विकास का कार्य आरम्भ करे, और तभी से स्त्रियां भी रजस्वला होने लगी वरना इससे पहले देवता रजस्वला होकर संतान उतपत्ति करते थे |
माता पार्वती की हठ
प्राचीन कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती ने शिव जी से कहा की उन्हें पुरुषो के कपड़ो पर लाल छींटे बहुत अच्छे लगते है और उन्हें भी अब वैसे ही कपडे चाहिए, भगवान शिव के मना करने पर भी जब माता पार्वती नहीं मानी तो शिव जी ने उन्हें वरदान दिया की अब से सिर्फ स्त्रियां ही रजस्वला होगी और संतान की उत्पत्ति भी स्त्री को ही करनी होगी |
इंद्रदेव ने दिया अपने पाप का अंश
इसी से जुडी एक कथा है जिसके अनुसार एक बार इंद्रा ने एक ब्रह्म राक्षस की हत्या कर दी थी जिस कारण उस ब्रह्म राक्षस का पुत्र इंद्र देव की हत्या करने के लिए उनके पीछे पड़ गया, अपने प्राणो की रक्षा करने के लिए इंद्र देव ने सूक्ष्म रूप धारण कर अपने आप को एक फूल में 1 लाख वर्षो के लिए छुपा लिया और भगवान विष्णु का कठोर तप किया |
इन्द्र की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त करने के उपाय के बारे में बताया, विष्णु जी ने कहा की उन्हें अपने पाप को समाप्त करने के लिए इसके अंश को वृक्ष, जल, भूमि और स्त्री को बांटना होगा, तब भगवान इन्द्र के आग्रह पर ये चारो मान गए लेकिन बदले में एक एक वरदान भी माँगा |
वृक्ष, जल और भूमि को अपना पाप देने के बाद भगवान इन्द्र ने स्त्री को अपने पाप का अंश दिया जिसके फलस्वरूप ही स्त्रीओ को मासिक धर्म की पीड़ा कासामना करना पड़ता है और वहीँ वरदान के फलस्वरूप सहवास के दौरान महिलाये पुरुषो की अपेक्षा अधिक आनंद महसूस करती है |