इस धरती पर जब जब पाप बढ़ा है तब तब भगवान ने इस धरती पर उसे समाप्त करने के लिए अवतार लिया है, हमारे प्राचीन शास्त्रों और पुराणों में भी यही बताया गया है की भगवान ने जब भी इस धरती पर अवतार लिया है उसकी वजह पाप का नाश करना ही रही है, भगवान विष्णु ने इस धरती से पाप को मिटाने के लिए भगवान राम, कृष्ण और नृसिंह जैसे कई अवतार लिए है |लोग भगवान के अवतारों के बारे में तो भलीभांति जानते है लेकिन बहुत ही कम लोगो को इस बात का ज्ञान है की भगवान ने किस तरह इस पृथ्वीलोक से मुक्ति पायी थी, विष्णु भगवान के नृसिंह अवतार के बारे में तो सभी जानते है लेकिन उन्होंने किस तरह अपने शरीर का त्याग किया था यह बात कम ही लोग जानते है |
भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए लिया था, हिंरण्यकश्यप को ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त था की उसे कोई भी ना तो जमीन पर ना ही आसमान में मार पायेगा , ना अस्त्र से ना शस्त्र से, ना देव मार पाएंगे ना मनुष्य न कोई पशु, उसकी मृत्यु ना रात में होगी ना ही दिन में और ना ही घर में कोई मार पायेगा और ना बाहर मार पायेगा | इसीलिए भगवान विष्णु ने नृसिंह का अवतार लेकर उसे महल के चौखट पर अपनी जंघा पर रखकर अपने नाखुनो से उसका वध किया था, उस समय ना तो रात थी और ना ही दिन था वह शाम का समय था, इस तरह ब्रह्मा जी का वरदान भी कायम रहा और विष्णु जी ने धरती से पाप का अंत किया |
पुराणों के अनुसार हिंरण्यकश्यप का वध करने के बाद भी भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हो रहा था, उनकी आँखे क्रोध से लाल थी और उनसे हर कोई भयभीत हो रहा था, भगवान नृसिंह के भय से देवता भी भयभीत होने लगे और नृसिंह जी को शांत ना होता देख वे शिव जी के पास मदद मांगने गए |
तब शिव जी ने भगवान नृसिंह को शांत करने के लिए वीरभद्र को भेजा लेकिन वीरभद्र भी इसमें नाकाम रहे और शिव जी से कहा की वे स्वयं उन्हें शांत करे, तब भगवान शिव स्वयं उन्हें शांत करने निकल पड़े लेकिन भगवान नृसिंह के क्रोध के सामने जब शिव जी भी कमजोर पड़ने लगे तो उन्होंने मानव, चील और सिंह के रूप वाले भगवान सरबेश्वर का रूप धारण किया और भगवान नृसिंह को शांत करने की कोशिश की लेकिन उनके प्रयास भी विफल रहे |
तब उन दोनों के बीच 18 दिनों तक भयंकर युद्ध चला, बाद में भगवान सरबेश्वर ने इस युद्ध को समाप्त करने के लिए अपने पंख से देवी प्रत्यंकरा को बाहर निकाला और जब देवी प्रत्यंकरा नृसिंह देव को निगलने का प्रयास करने लगी तो भगवान नृसिंह देवी के सामने कमजोर पड़ गए और उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने देवी से क्षमा मांगी |
तब भगवान नृसिंह ने अपने प्राणो को त्यागने का मन बना लिया और भगवान शिव से आग्रह किया की वह उनके चर्म को अपना आसन बना ले | तब भगवान शिव ने कहा की उनके सरबेश्वर रूप का अवतरण नृसिंह देव के गुस्से को शांत करने के लिए ही हुआ था और नृसिंह और सरबेश्वर एक ही है इन्हे अलग नहीं किया जा सकता है |
इसके बाद भगवान नृसिंह ने अपने प्राण त्याग दिए और विष्णु के तेज में शामिल हो गए और भगवान शिव ने उनके चर्म को अपना आसन बना लिया |